Chanakya Neeti : Eleventh Chapter
चाणक्य नीति : ग्यारहवाँ अध्याय
SRI CHANAKYA NITI-SASTRA
(THE POLITICAL WISDOM OF CHANAKYA PANDIT)
CHAPTER ELEVEN
चाणक्य नीति : ग्यारहवाँ अध्याय
SRI CHANAKYA NITI-SASTRA
(THE POLITICAL WISDOM OF CHANAKYA PANDIT)
CHAPTER ELEVEN
1. उदारता, वचनों
में मधुरता, साहस, आचरण
में विवेक ये बातें कोई पा नहीं सकता ये मूल में होनी चाहिए.
Generosity, pleasing address, courage and propriety
of conduct are not acquired, but are inbred qualities.
2. जो अपने समाज को छोड़कर दूसरे समाज को जा
मिलता है,
वह उसी
राजा की तरह नष्ट हो जाता है जो अधर्म के मार्ग पर चलता है.
He who forsakes his own community and joins another
perishes as the king who embraces an unrighteous path.
3. हाथी का शरीर कितना विशाल है लेकिन एक छोटे
से अंकुश से नियंत्रित हो जाता है.
एक दिया घने अन्धकार का
नाश करता है, क्या अँधेरे से दिया बड़ा है.
एक कड़कती हुई बिजली एक
पहाड़ को तोड़ देती है, क्या
बिजली पहाड़ जितनी विशाल है.
जी नहीं. बिलकुल नहीं. वही
बड़ा है जिसकी शक्ति छा जाती है. इससे कोई फरक नहीं पड़ता की आकार कितना है.
The elephant has a huge body but is controlled by
the ankusha (goad): yet, is the goad as large as the elephant? A lighted candle
banishes darkness: is the candle as vast as the darkness. A mountain is broken
even by a thunderbolt: is the thunderbolt therefore as big as the mountain? No,
he whose power prevails is really mighty; what is there in bulk?
5. जो घर गृहस्थी के काम में लगा रहता है वह
कभी ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता. मॉस खाने वाले के ह्रदय में दया नहीं हो सकती.
लोभी व्यक्ति कभी सत्य भाषण नहीं कर सकता. और एक शिकारी में कभी शुद्धता नहीं हो सकती.
He who is engrossed in family life will never
acquire knowledge; there can be no mercy in the eater of flesh; the greedy man
will not be truthful; and purity will not be found in a woman or a hunter.
6. एक दुष्ट व्यक्ति में कभी पवित्रता उदित
नहीं हो सकती उसे चाहे जैसे समझा लो. नीम का वृक्ष कभी मीठा नहीं हो सकता आप चाहे
उसकी शिखा से मूल तक घी और शक्कर छिड़क दे.
The wicked man will not attain sanctity even if he
is instructed in different ways, and the nim tree will not become sweet even if
it is sprinkled from the top to the roots with milk and ghee.
7. आप चाहे सौ बार पवित्र जल में स्नान करे,
आप
अपने मन का मैल नहीं धो सकते. उसी प्रकार जिस प्रकार मदिरा का पात्र पवित्र नहीं
हो सकता चाहे आप उसे गरम करके सारी मदिरा की भाप बना दे.
Mental dirt cannot be washed away even by
one-hundred baths in the sacred waters, just as a wine pot cannot be purified
even by evaporating all the wine by fire.
8. इसमें कोई आश्चर्य नहीं की व्यक्ति उन बातों
के प्रति अनुदार कहता है जिसका उसे कोई ज्ञान नहीं. उसी प्रकार जैसे एक जंगली शिकारी
की पत्नी हाथी के सर का मणि फेंक कर गूंजे की माला धारण करती है.
It is not strange if a man reviles a thing of which
he has no knowledge, just as a wild hunter's wife throws away the pearl that is
found in the head of an elephant, and picks up a gunj (a type of seed which
poor tribals wear as ornaments).
9. जो व्यक्ति एक साल तक भोजन करते समय भगवान
का ध्यान करेगा और मुँह से कुछ नहीं बोलेगा उसे एक हजार करोड़ वर्ष तक स्वर्ग लोक
की प्राप्ति होगी.
He who for one year eats his meals silently
(inwardly meditating upon the Lord's prasadam); attains to the heavenly planets
for a thousand crore of years. ( Note: one crore equals ten million)
10. एक विद्यार्थी पूर्ण रूप से निम्न लिखित बातों
का त्याग करे.
१. काम
२. क्रोध ३. लोभ ४. स्वादिष्ट भोजन की अपेक्षा. ५. शरीर का शृंगार ६. अत्यधिक
जिज्ञासा ७. अधिक निद्रा ८. शरीर निर्वाह के लिए अत्यधिक प्रयास.
The student (brahmacari) should completely renounce
the following eight things -- his lust, anger, greed, desire for sweets, sense
of decorating the body, excessive curiosity, excessive sleep, and excessive
endeavour for bodily maintenance.
12. वही सही में ब्राह्मण है जो केवल एक बार के
भोजन से संतुष्ट रहे, जिस पर
१६ संस्कार किये गए हो, जो
अपनी पत्नी के साथ महीने में केवल एक दिन समागम करे. माहवारी समाप्त होने के दूसरे
दिन.
He alone is a true brahmana (dvija or
"twice-born") who is satisfied with one meal a day, who has the six
samskaras (or acts of purification such as garbhadhana, etc.) performed for
him, and who cohabits with his wife only once in a month on an auspicious day
after her menses.
13. वह ब्राह्मण जो दुकानदारी में लगा है,
असल
में वैश्य ही है.
The brahmana who is engrossed in worldly affairs,
brings up cows and is engaged in trade is really called a vaishya.
14. निम्न स्तर के लोगों से जिस व्यवसाय में
संपर्क आता है, वह व्यवसाय ब्राह्मण को शूद्र बना देता है.
The brahmana who deals in lac-die, articles, oil,
indigo, silken cloth, honey, clarified butter, liquor, and flesh is called a
shudra.
15. वह ब्राह्मण जो दूसरों के काम में अड़ंगे
डालता है,
जो
दम्भी है,
स्वार्थी
है,
धोखेबाज
है,
दूसरों
से घृणा करता है और बोलते समय मुँह में मिठास और ह्रदय में क्रूरता रखता है,
वह एक
बिल्ली के समान है.
The brahmana who thwarts the doings of others, who
is hypocritical, selfish, and a deceitful hater, and while speaking mildly
cherishes cruelty in his heart, is called a cat.
16. एक ब्राह्मण जो तालाब को,
कुए को,
टाके
को,
बग़ीचे
को और मंदिर को नष्ट करता है, वह मलेच्छ
है.
The brahmana who destroys a pond, a well, a tank, a
garden and a temple is called a maleccha.
17. वह ब्राह्मण जो भगवान के मूर्ति की सम्पदा
चुराता है और वह अध्यात्मिक गुरु जो दूसरे की पत्नी के साथ समागम करता है और जो
अपना गुजारा करने के लिए कुछ भी और सब कुछ खाता है वह चांडाल है.
The brahmana who steals the property of the Deities
and the spiritual preceptor, who cohabits with another's wife, and who
maintains himself by eating anything and everything s called a chandala.
18. एक
गुणवान व्यक्ति को वह सब कुछ दान में देना चाहिए जो उसकी आवश्यकता से अधिक है.
केवल दान के कारण ही कर्ण, बाली
और राजा विक्रमादित्य आज तक चल रहे है. देखिये उन मधु मक्खियों को जो अपने पैर दुख
से धरती पर पटक रही है. वह अपने आप से कहती है " आखिर में सब चला ही गया.
हमने हमारे शहद को जो बचा कर रखा था, ना ही
दान दिया और ना ही खुद खाया. अभी एक पल में ही कोई हम से सब छीन कर चला गया."
The meritorious should give away in charity all
that they have in excess of their needs. By charity only Karna, Bali and King
Vikramaditya survive even today. Just see the plight of the honeybees beating
their legs in despair upon the earth. They are saying to themselves,
"Alas! We neither enjoyed our stored-up honey nor gave it in charity, and
now someone has taken it from us in an instant."